Best Haryanvi Kahani Khudkushi | हरयाणवी कहानी खुदकुशी

हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series haryanvi kahani में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” खुदकुशी ” यह एक Moral Story है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Story या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

 Haryanvi kahani “खुदकुशी “भाग 1

Haryanvi Kahani,
कहानी खुदकुशी

गर्मियाँ  की दोपहर के ग्यारह ए बजे  होंगे। फेर बी धरती  न्यू  जळै थी  ,ज्णू  किसे  कुम्हार  न पज़ावा सुलगा  दिया  हो । टिल्लू अपणे आँगण  की  कूण  मैं  हारे धोरै बैठी  कीकर  के पेड़   पै घौंसल्यां कानी खोयी सी देखण लाग रह्यी थी । इतने  सुथरे  महल बुण  राखे  सैं  मरजाणियां  न ज्यूं  किसे  चातर  लुगाई  न ऊन सळाई  तै पैरां  के  मोजे  बुण  कीकर  पै टांग दिए  हों  ।

ये  कितणी  बढ़िया  जिंदगी  जी रही  हैं ।टिल्लू  न जलण  होयी और मन -मन  मैं  सोच्या “ना म्हारे  की ढाल  दो टेम रोटियाँ की चिंता  ,ना पाट्टे  चिथड्यां  की शर्म ,बस दो दाणे  चुगे आर ऐश  करी  ।बाळक  बी कितणे  मस्त  सैं ,ना किताब ठा के अंग्रेजी  मैं माथा  मारणा और ना कोये  स्कूल  जाणा  ,ना नौकरी  की खातर ए बी सी डी के रट्टे मारणे,ना किसे  प्यार -प्रेम के चक्कर म्हं पड़ इज्जत  के झंडे उठाणे और ना पैदा  होते ए बुढापे  तक के पुल बांधणे ।बस सो लिए,उठ  लिए ,खेल लिए ,खाये  पीये  और मौत आयी उस दिन पैर ढीले छोड़ दिये । पर या  माणस  की बी कोये  जूण  सै  । पैदा  होते ए आँगण  मैं  गोड्डे घिसडाण लागी  थी ,इब सैंतीस  के कुंदे  म्हं  जा  ली  ।कदे  सुख  ता  टीकड़ा  नहीं खाया । ” टिल्लू न लाम्बी  सी साँस  ले  ,एक हल्की  सी आवाज  दी  “माँ  री ,किते  सुणै  सै  के?मैं  तो  जी कै  हार ली  ।” टिल्लो  न जोर तै आपणी  माँ  तांहि आवाज  दी  ,पर माँ  हो तो सुणै

टिल्लो  की आँख  कच्ची छांत  की ढाल  टपकणी शुरू  होयी  तो  बस बंद  होणी  मुश्किल  होगी  ।बेचारी  करती  बी  के?

सारा  जीवन आँख्या आगै चरखे की ज्यूं घूमग्या   । वा अपने आप त कहण  लागी  ।

मैं  छोटी  सी थी, जब माँ छोड़  के मरी थी  ।बेचारी मरी बी  के आपकी आयी थी , बाप की शराब  की लत्त  तै तंग आकै एक दिन रात  न सपरे  पी ली । भागम भाग रात  न ए  हॉस्पिटल  ले कै  गए  पर हॉस्पिटल  पहोंचते ए साँस  इतणे  बड़े संसार की कौण सी कूण म्हं जा खोए,जाण  बी  नहीं  पाट्टी  ।

बड़े परिवार  मैं  दादा – दादी,मौसी  ,ताऊ,चाचा  -चाची  सब थे  ,पर किसे  न या  बात पुलिस  तै  नहीं  बताई के बापू घणी  दारू पी कै  माँ  न मारा  करता  ।रोज  बळद  के चाम  के सांटे  तै  देही   न तोड्या करता  । माँ  पै  जितणा  सह्या  गया उतणै खूब ओट्या फेर  बस की  नहीं  रही  ।

मैं  उस टेम सातवीं  क्लास  म्हं थी ।सारी  समझा  करती ।दो बड़ी  बहणा और एक भाई,  मैं सबतै छोटी थी  । बाप और परिवार  न मिलकै दोनूं बड़ी बहणा  का इकट्ठा ब्याह  कर दिया और मेरी की पढाई छुड़वा  दी  ।माँ  मरे पाछै भाई  का  बी  पढाई  तै  जी उचट गया और स्कूल छोड़  दिया ।पर, बाप  न दारू नहीं छोड़ी ।

बाप -बेटा  सबेरे ए आपणे  बलदां  न खोल  बाग  मैं  लिकड़  जाते ।थोड़े दिन तो  मनै बी बरतन -भांड्यां ,रोटी -टूकां  म्हं दादी  का हाथ  बंडादी रही  ।फेर मेरे हिस्से  बी डोळे  के खूड्डां  की दूब  पाडणी आगी थी ।कई  बार दरांती  तै  कदे  गूट्ठा कटा  ,कदे आंगळी ,पर किसनै  दिखांदी । बस  माँ  की ढाळ चोट पै  पेशाब  कर आपणी  चुन्नी  की कातर  बाँध  लेती  और अपणे  काम कै  लाग  जाती  ।

डांगर -ढोर ,खेत -क्यार  करदे चार  साल कद म्हं  को लिकड़गे,बेरा ए नहीं  पाट्या  । सबेरे  दोनूं भाण -भाई रहडू  जोड़  लिकड्या करते  और आपणे खेत मैं मजदूरां तै बाध काम करा  करते  ।धीरे धीरे  बाप न खेत  का काम बी छोड़  दिया  । बस दारू  पीये  पड्या रह्या  करता  ।खेत की जमीन आच्छी थी  तो भाई  के रिश्ते आणे शुरू  होगे  ।कुनबे  न मिलकै  मेरी खातर बी  छोरा  देख  लिया ।दोनों का ब्याह एक दिन  आगे -पीछे  धर दिया  ।

 Haryanvi kahani

उस दिन मैं चाची- ताईयाँ न मिलकै  सिंगारी थी  ।जीवन मैं पहली  बार  इतणी  टूम  ,नये  कपड़े  पहरे थे । बागड़  मैं  रिश्ता  करा था  तो उनकी  बड़ी  -बड़ी कंठी -माळा  ,जोई  देख  कै  भोत  हँसी आयी थी ।शीशा  देख  कै बस एक बात मुँह  तै लिकड़ी “आज तो इस तरहां  सिंगार दी  ज्णू  बळद  न मेेले  मैं बेचण  तै  पहले  नुहा -धुआ कै तैयार करकैं ले जाया करैं  । ” फेर   मौसी  की ओड़ रोंवती सी देख्या  । जी  म्हं घणी ए बात थी , पर  ताळुआ  सूखग्या  ।बस ऐके  बोल बोल्या “ले भाई  मौसी थारे खेत  के डोळे  छोड़  इब  ओर किते खूड  समारणे  पडैंगे ।”   उस टेम माँ  की भोत याद आयी  और मौसी  के गळ  लाग खूब  रोयी  ।

ब्याह  के ससुराल आयी  तो  सबका खूब  लाड -प्यार  मिला  । मनै पाछली  जिंदगी  के सारे  दुख भूला  दिये । घरआळे  के  चार  किले जमीन थी और आच्छा अनाज  होया  करता  ।  मौसम के हिसाब तै  सब्जी  भी बो  दिया  करते  । उस बखत सरोज  का पापा खेती  कै  साथ शहर मैं टेम्पो बी चलाया करता  ।

जब दोनों  का नया -नया  ब्याह  होया था  तो गर्मियाँ म्हं छांत  पै  सोया  करते । सारा दिन टेम्पो चला  के शाम  नै घर नै आंदे तो रोज  मेरी खातर  खाण  न कुछ ना कुछ लाया  करता  । सारा  दिन काम करकै थक  जाता ,फेर  बी  रातां  म्हं हाथ  के पंखे  तै हवा  करता । पति  का इतणा  लाड- प्यार  पा कै मैं  धान  की क्यारी  की ढाल खिलगी थी ।

पर ,एक दुख  बी था  के पीहर  म्हं भाभी इतणी  निकम्मी आयी  के  आणा -जाणा छोड़  दिया  । इब जो  बी  कुछ था , ससुराल ए  सबकुछ मान लिया था  ।पर नू कया  करैं  सुख के दिन जांदे  वार  नहीं लाग्या करै । उपरा तळी  के  दो बाळक  होगे  ।बड़ी  बेटी  सरोज और एक बेटा  । जिंदगी की गाड़ी बिना आंखळियाँ सुथरी ढाळ  सरक रह्यी थी ,पर,सुख  के  टीकड़े तावळे  ए समड़गे ।  सास  के सिर म्हं घणा दर्द रहण  लाग्या  । कई डॉक्टरां क दवाई- पाणी लेयी  ,पर आराम  ना होया  ।  लास्ट  मैं जब टेस्ट  कराए  तो बेरा  लाग्या  के दिमाग मैं ट्यूमर है। इलाज  कराते – कराते  रपिया  पाणी  की ढाळ  बुहाया , पर,कुछ  काम नहीं आया  । दुखी होकै   या माँ बी मरगी  । उस टेम सास नहीं  मरी  थी  मेरे आच्छे  दिनां पै  टेम  न पूळा  गेर आग  लगा दी थी  ।

माँ  के दुख  मैं इन न  बी दारू  पीणी शुरू  कर दी  ।शुरुआत  म्हं थोड़ी -थोड़ी  पीणी  शुरू  करी  तो  मनै  बी कुछ  नहीं  कह्या ।पर वो दिन बी आया  जब   काम- धंधा छोड़  कुरळा ही शराब  त करणा शुरू  कर  दिया।

कहानी संग्रह :- 1.एक और 

2. पाणी का ओसरा

  Haryanvi Kahani भाग 2. खुदकुशी

घर की चिंता छोड़  बस अपणी  दुनिया  म्हं मगन  रहण  लाग्या ।बैरी घणा ए समझाया  पर या तो इसी  लत्त  सै,  पड़गी , तो पड़ ए गयी  । बाबू  न घणी ए बार  लट्ठां  गेल  पिट्या पर उस माणस  के बच्चे कै किमे  समझ नहीं आया ।छ:-छ: महीने ट्रकां  पै  किसे  गेल चला  जाता  ,ना कोये फोन ,ना चिट्ठी  ।कई  बार सोच बी लिया  कर दी ,बेरा न मरग्या  के किते  जीवै सै  । आवैगा  बी ,के नहीं आवैगा  ।घर तै  तो आगले  न कती  बैराग  ले लिया । हाम सुसरा  बहू आपणे खेत  कमा  गुजारा  करते रह्ये

हाम  कितणे  दिन शोग मनाते  ।  पेट   तीनो  टेम रोटी  माँगदा और बाळकां की  जरूरत  रोज  मुँह  बाकै देहळी भीतर खड़ी  हो ज्या थीं ।धणी  की ओड़ तै   छाती   मुक्का  मार लिया  और अपणे  बाळकां प ध्यान कर लिया  ।दूध -धीणा  बेच  कैं आपणा  गुजारा  करणा शुरू  कर दिया  । दो  भैंस और घर के खेत   मैं  बीर  माणस बण  या सोच  लागी  रह्यी, के बाळक  बड़े  हो जावैंगे  तो सुख हो जावैगा  ।पढ़  लिख  कैं  दोनों  बाळकां  न सरकारी  नौकरी  लगाऊंगी

कपास  के दिनां म्हं सबेरे  मंडासा  मार  लिकड़या  करदी और दूध  के टेम बड्या करदी  ।गर्मियाँ  मैं  लामणी  कर दी ।कपास  ,बाजरा  ,गेहूँ  बो कैं  सुसरा  बहू  बालकां  का  पेट

पाळ  रहे थे  ।  पर बिजळी  तो उस दिन पड़ी  जब  बाबू  बी खेत  की छ्यान  तळै  सुत्या ए रहग्या

उस दिन मनै धरती भीड़ी होगी थी  ।  जवान  बेटी और बाप  नाळियाँ  म्हं  पड़ा हांडै,बेटा  सहारा  लगाण  जोग्गा  नहीं  होया  सै  ,क्यूकर गुजारा  होगा?    बाबू  गेल  बाहरणे की  सौ  रूखाळ थी   ।किसकी  हिम्मत थी  कोये झांक  बी  ले? सूख  कैं डिक्खर  होग्यी ।लट्टू  सी आँख ढूंगे आळे  पै  लाग्गी काळस  बरगी  दिखण  लागी थी । हाडियाँ  की कती  बुनस  रहगी । फेर  बी कद  लग पड़ी  रहंदी  ,कद  लग छाती  के दुखां  पै  सुख  का पालिश लागण  की बाट  देखदी ,हारकैं  खुद ए छाती  करड़ी  कर आपणा  काम संभाळणा  पड़ा  । कुनबे  के  बड़े स्याणा  तै  मिलकैं चारूं किल्ले अधवाड़े  की बुआई न दिए

पर ,  औरत  जात  का  तो झाड़ -झाड़  बैरी  हो सै ।  सबकी आँख  लुगाई के जवान गात पै  चील  की ढाळ  रह्या करैं  ।एक दिन मैं बी आपणे खेत म्हं बरशम  काट  रह्यी थी  पाछे तै   कुनबे  के  जेठ  न हाथ  पकड़  लिया  ।घणी ए जोर जबर्दस्ती  करी  पर मैं  बी असल  माणस की  जाम थी ।एक कुंगर  के  बस की  नहीं थी  ।जिसनै  दो- दो  बळदां  की नकेल एक मुट्ठी  म्हं  कसी  हो  ,उसका  एक बूढ़ा खागड़  के बिगाड़  सकै था  ।  खाजले  कुत्ते  की ढाल मार -मार  भजा  दिया ।कुनबे  म्हं किसे  तै जिक्र  नहीं  करा  । खूब  जाणूं थी  के दुनिया  नरी  मजे  लेण  की सै  ।आज बताऊंगी  तो  काल  न मन्नै ए गंदी  बतावैंगे

टेम भाज्या  नहीं थ्याह रह्या था  ।बेटी  जवान  होगी  बारहवीं  म्हं आच्छे  नंबर आगे  तो शहर  के  कॉलेज  म्हं  दाखला  दुआ दिया  । पर ,मन्नै कदे  गौर ए नहीं  करी  के सरोज आजकाल भोत  बदलदी आवै  सै  । रोज  नये -नये सूटां की डिमांड  करै  सै ।मैं सोचदी ,बाहर जावै  सै  और इस उम्र  मैं  टाबरां  न ओढण  पहरण  का  चाव  होया ए करै  ।या सोच एकाधी  बात मान लेती

घणे दिन तै किताब उठाणी त बी  छोड़ राक्खी थी ।कई  बार घर आंदे -आंदे  बी  लेट  होज्या  सै  । मना कदे शक करण का टेम ए नहीं  लाग्या  । डांगरां,खेत  और शराबी आदमी  की चिंता  म्हं बँध  के  रहगी   ।पर ,काल  साँझ न  जिब  सरोज  लड़खड़ांदी घर आयी तो ध्यान  तै देख्या  ,उसकी आँख खूब  लाल  हो रह्यी और मुँह  तै बाप की ढाळ  शराब  की  बदबू आ रह्यी  । मैं उस टेम भैंसा  न आँगण  म्हं न्यार  गेर रह्यी थी  ।सरोज  के  लच्छण  देख  हाथ  तै टोकरी छूटगी

बेटी  के इसे  लच्छण  तो कदे  सपनां  बी ना सोचे थे  ।  काळजा साँस  लेणा भूलग्या । घणू ए देर कती  सुन्न  होयी  भैंसां की खोर पै बैठी  रही  ,फेर ठा कै चिमटा  सरोज  कै  पाछै -पाछै भीतरले कोठे  मैं  जा बड़ी । जितणे लागे,उतणै खूब मारे  और दुहाथड़े  मार -मार रोण  लागी  ।  सरोज  नशे  मैं धुत्त  होयी , पड़  कै  सोगी ।घर म्हं  ना साँझ  का चूल्हा  सुलग्या  ,ना  डांगर  संभाळे  । घरआळा  तो चार  दिन तै  बेरा  ए  नहीं  कित  गुप्त  हो रह्या सै । बेटा वारी  सी    घर न आया  तो   माँ संभाळी  ।मेरा  बदन बुखार मैं गर्म  रोटी  की ढाळ बफारे छोड़ रह्या था  । आधी सी रात   न होंश आया  तो सरोज धोरै  गयी  न्यू  देखण  के बेटी  कै  छौह मैं घणी  तो नहीं  मार दी

गुस्सा तो घणा ए आ रह्या  था  पर गुस्से  तै घणा  दुख था ।  मैं  बी माँ सूं   । खाट  पै  बैठ  कै  बेटी  के  गात  पै  हाथ फेरया । सातळां  पै हाथ  ए धरा था   ,तो किमे  करड़ी  -करड़ी डिब्बे  बरगी  मोटी  सी चीज  महसूस  होयी  । कुरता ठा कै  देख्या  तो वा चीज   सलवार  के भीतर  छुपी लागी । एक बार तो जवान  बेटी  का नाड़ा खोलदे शर्म आयी  फेर खोल  कै  देख्या  तो आँख पाट्टी  रहगी  । निर्भाग न सलवार  के भीतर   जेब  बणा  राख्खी सै और उसकै भीतर टच स्क्रीन  का मोबाइल  छुपा राख्या

स्क्रीन का मोबाइल चलाणा  नहीं आया  । समझ  नहीं आया  के करै?  मनै इतणे दुख  देखे , पर,कदे  हार नहीं  मानी,आज शर्मिंदगी  तै गोड्यां  म्हं सिर दिये  सारी  रात बैठी  रही ।  रपिया  रपिया  जोड़  कैं,आपणे  काळज़े  कै  थूक  लगा – लगा  बाळकां  की बढ़िया  परवरिश  करी  । कितणे ए तंगी  के दिन  रह्ये  ,पर माँगण खातर  किसे  की  देहळ  नहीं  चढ़ी ।बाळकां  तांहि  मुँह  के टूक  काढ -काढ  खुवाये ।पर , औलाद  इसे  दिन  दिखा  देवैगी  सोच्या नहीं  था  ।सारी  रात घूं घूं  करदे पंखे गेल दिमाग बी घूं घूं  करकै  जाम  होण  न होग्या  ।सिर  का एक हिस्सा  पाटण  न हो रह्या था  इसा  जी करै था  जणू भीत  कै  टक्कर  मार – मार  मर ज्याऊं

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सबेर  का सूरज छ्यांत  पै  तै  कूदण  न हो रह्या था  ।चिड़ियाँ  न चीं चीं  करकै  कती  बिघन  तार राख्या था  ।सारी  चिड़ियाँ  सबेरे  की  रोटियाँ  की बाट  म्हं थी  ।कई  साल तै टिल्लू  की उठदे ए  चिड़ियाँ  न बासी  रोटियाँ  का चूरा  गेरण  की आदत थी  । उसकै  बाद  वा भैंसां  का  न्यार  पाणी  करा  करदी  ।आज भैंसा  न बी ठाण  मैं  कटिये  काट राखे थे। टिल्लू  बिन सारे भूखे  थे,पर उसके  पैरां  की सत्त  सा लिकड़  रह्या था  । फेर  बी उसनै   धरती म्हं  हाथ  टेक  उठण  की कोशिश  करी और अपणे  बेटे धोरै  बाहरली  बैठक  मैं  चली  गयी  ।उसके  हाथ  म्हं  मोबाइल  देकैं  चलाण की  कही  ।छोरे  न माँ  की ओड़  हैरानी  तै देख्या  ,के  माँ  नया  मोबाइल  कद ले आयी  ।पर ,टिल्लू  न सारी  बात आपणे छोरे  तांहि  बता  दी

उसनै  मोबाइल खोल्या  । फेर  वीडियो और फोटो  देख  दोनों  माँ-बेटा  नजर  मिलाण  जोग्गे  नहीं  रहे  ।मोबाइल  म्हं चार छोरां  गेल  सरोज  की शराब  पीती  की घणी ए वीडियो थी  और फोटुआं  का  तो कोये ओड़ नहीं  था  ।सरोज  नशे म्हं धुत्त  गाम के छोरां  के  कांध्यां  पड़ी बहक  रह्यी थी  ।  सरोज  न बेटे  के  हाथ  तै  मोबाइल  लिया और घर के आँगन म्हं  सुन्न  होयी  घिसड़दी  सी गयी  । हारे कै पीठ  लगा  चुपचाप  बैठी  रही  ।ना रोयी  ,ना हाँसी  बस अधमरी  सी होयी  पड़ी  रह्यी  ।

दोपहर का घाम तै आँगन  सुलगण  लाग्या  तो टिल्लू न थोड़ा  आप्पा संभाळा आर सरोज  तै  लात  मार  कैं ठाया ।मुश्किल  तै  जबाड़ा भींच  के  बोली  “लाडो ! बस के यें ए दिन देखणे  रहगे थे? ऐ थोड़ा  भोत  तो आपणी  माँ  की ओर बी  देख  लेती ।कुछ  तो शर्म कर लेती ।कितणी  मुश्किल  तै  बड़े  करे  हो  ,तनै  तो सारा  बेरा  है  ।  फेर  बी

सरोज  पहलम तो खाट  म्हं  नीची नजर करे चुप  रही  । फेर शर्म  के  चीथड़े  से पेड़ बोली  – “माँ,शर्म  तो तन्नै आणी  चाहिए और मेरे  बाप न आणी  चाहिए । थारे घर म्हं  जवान  बाळक  सैं  ,फेर बी  मेरा  पापा  शराब  पी के आवै ,आर आकैं  तेरे ऊपर  पड़ ज्या  । थाम रोज  लागे  रहो ।न्यू  बी सोचो  के बाळकां  पै  के असर पड़ैगा ।जै एकाध  बार मनै इसा  कर लिया  तो के जुल्म  होग्या

टिल्लू  कती धरती म्हं गडगी ।मुँह  के भीतर एक सुक्खा शबद नहीं  बच्या  । आँख्या  म्हं  सूखे जोहड़ की ढाळ तरेड़ सी  पाटगी । वा क्यूकर  बेटी  तै समझांदी  के जै दारू पीये  तेरे  बाप न नाट  जाऊं  तो  उरै  गाम तमाशा देखै  । जवान  बाळकां आगै  चुप  न्यू  रही  के बेहूदगी खिंड  जावैगी  पर इस खागड़  का के इलाज था  ।मार बी देंदी ,तो  लोग  कहंगें लुगाई  न आपणा घरआळा  मार दिया  । सरोज  न किमे  सूझ  नहीं  पड़ी  ।बस माँ  की  याद आयी,उस टेम मेरी  बी दो बड़ी भाण  जवान थी  ।के बेरा  वा बी नूये  दुखी  होयी  होगी । टिल्लू  उठ  कैं सीधी  तूड़ी आळे  म्हं  मटिया  तेल की  पीपी और माचिस की डिब्बी ले चली  गयी  ।कुंडा भेड़  कैं  फक्क  दे सी आग  लगा  ली  ।आसमानां लग धुम्मा उठ्या,इतणै  तो देही की लाकड़ी  सी हाहाकार  कर शांत  हो ली थी

लेखिका:-  सुनीता  करोथवाल।

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