भारत कुल 8 प्रकार की मिट्टी पायी जाती है।
भारतीय मिट्टी के 8 प्रकार है जो इस प्रकार हैं
1.जलोढ या दोमट मिट्टी
2.काली मिट्टी
3.लेटेराइट मिट्टी
4.हिमालयी मिट्टी
5.रेतीली या बलूयी मिट्टी
6.पीट या दलदली मिट्टी
7.रेह या ऊसर
8.लाल या पीली मिट्टी
मिट्टी को जल सहित 17 प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। भारतीय मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और हयूमस की कमी है। भारतीय मिट्टी को N.P.K – 42:2:1 में दिया जाना चाहिए। परन्तु इसे 5.7:2.7:1में प्रदान किया जाता है। नाइट्रोजन के अत्यधिक प्रयोग से भूमि की उर्वरता स्थिर हो गयी है।
भारतीय मिट्टी 8 प्रकार की है
(i) दोमट मिट्टी
इसे जलोढ़ मिट्टी भी कहते हैं। यह रेतीली और चिकनी मिट्टी के योग से निर्मित होती है। भारत में सर्वाधिक 43% क्षेत्रफल में यही मिट्टी पायी जाती है। U.P. में इसका सर्वाधिक विस्तार है।
अन्य क्षेत्र है :-• पंजाब• प. बंगाल• गुजरात• ब्रह्मपुत्र की घाटी• हरियाणा• पूर्वी तट• बिहार• पूर्वी राजस्थान
खादर के रूप में इसका निर्माण होता है। यह भारत की सबसे उपजाऊ मिट्टी है परन्तु उसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, हयूमस की कमी होती है। पोटाश की अधिकता होती है।
(ii) काली मिट्टी
यह मिट्टी ज्वालामुखी के लावा से निर्मित है। इसे रेवार या एण्टीसाल भी कहते हैं। इसमें आयरन, एलुमिनियम तथा चूने की अधिकता है। परन्तु नाइट्रोजन, फास्फोरस और हयूमस की कमी होती है। पोटॉश की अधिकता होती है।महाराष्ट्र में इस मिट्टी का सर्वाधिक विस्तार है
अन्य क्षेत्र है• दक्षिण पूर्वी राजस्थान• मालवा का पठार • उत्तरी कर्नाटक• तमिलनाडु• काठियावाड़• तेलंगाना
इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता होती है अत: सिंचाई की कम आवश्यकता होती है। सूखने के साथ ही इस मिट्टी में दरारें पड़ जाती हैं। इसे स्वतः जुताई के नाम से जाना जाता है। यह मिट्टी गेहूँ, कपास, मूंगफली, प्याज, पान और संतरा के लिए उपजाऊ होती है।
(iii) लाल या पीली मिट्टी
यह मिट्टी उच्च वर्षा और औसत तापमान वाले क्षेत्रों में पायी जाती है। जहाँ आग्नेय चट्टाने उपस्थित रहती है।आयरन आक्साइड की अधिकता के कारण इसका रंग लाल होता है। इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और हयूमस की कमी होती है। इसका सर्वाधिक विस्तार तमिलनाडु में है।
अन्य क्षेत्र हैं.- • कर्नाटक का दक्षिण भाग• उड़ीसा• आन्ध्र प्रदेश• झारखण्ड• बुंदेलखण्ड• छत्तीसगढ़
यह मिट्टी तम्बाकू तथा कपास के लिए अत्यंत उपजाऊ मानी जाती है।
(iv) लेटेराइट मिट्टी
यह लाल मिट्टी का ही एक रूप है जो उच्चतापमान, अधिक वर्षा और ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पायी जाती है।आयरन आक्साइड और एलुमिनियम की अधिकता होती है। नाइट्रोजन,फास्फोरस, हयूमस की अधिकता होती है। यह मिट्टी बागानी फसलों के लिए उपजाऊ मानी जाती है। काजू की खेती के लिए सर्वश्रेष्ट है।
केरल में इसका सर्वाधिक विस्तार है। इसके अन्य क्षेत्र हैं.-• मेघालय• नीलगिरी
(v) हिमालयी मिट्टी या पर्वतीय मिट्टी
इस मिट्टी में नाइट्रोजन पर्याप्त मात्रा में पायी जाती पोटाश की कमी होती है जम्मू-कश्मीर में इसका सर्वाधिक विस्तार है। मृदा अपरदन इस मिट्टी की प्रमुख समस्या है। जम्मू-कश्मीर एवं हिमांचल प्रदेश में सेब की तथा असोम में चाय की खेती इसी मिट्टी पर की जाती है।
(vi) बलूयी या रेतीली मिट्टी
यह सबसे कम उपजाऊ मिट्टी है। इसमें नाइट्रोजन व हयूमस का पूर्ण अभाव होता है। राजस्थान में इसका सर्वाधिक विस्तार है। अन्य क्षेत्र है. • उत्तरी गुजरात• दक्षिणी पंजाब
खेजरी के वृक्ष लगाकर तथा दलहन की खेती करके इसका उपचार किया जा सकता है।
(vii) पीट या दलदली मिट्टी
यह मिट्टी हयूमस से भरपूर होती है। परन्तु आयधिक आद्रता के कारण सभी फसलों के लिए उपयुक्त नही है। मैग्रोव वनस्पति इस क्षेत्र में पायी जाती है।
इस मिट्टी के प्रमुख क्षेत्र है .- • बंगाल के निचले भू-भाग• कच्छ का रण• चिल्का
(viii) ऊसर मिट्टी
इसे रेह, कल्लर, चोपन, क्षारीय और नमकीन मिट्टी भी कहा जाता है। अत्यधिक क्षारीय होने के कारण यह मिट्टी फसलों के लिए अनुपयुक्त होती है।
शीशम और दलहनी फसलों की खेती से इसका उपचार किया जाता है। इसका सर्वाधिक विस्तार U.P. में है 40%
मृदा उपचार कैसे करें ?
विभिन्न तरीकों से मृदा के अनउपजाऊपन को समाप्त करना ही मृदा उपचार है। भारत के पूर्वी भाग की मृदा अम्लीय तथा पश्चिमी भाग की सारीय है। अम्लीय मृदा का उपचार चुने के द्वारा तथा सारीय मृदा का उपचार जिप्सम द्वारा किया जाता है।
मृदा अपरदन को कैसे रोकें?
वायु या जल के कारण मिट्टी की ऊपरी उपजाऊ परत का हट जाना ही मृदा अपरदन है। भारत का 45% भूमि इस समस्या से ग्रसित है। वृक्षों एवं झाड़ियों के काटने से, भारी वर्षा से तथा तेज हवाओं से मृदा अपरदन होता है। chek clam बनाकर तथा वृक्षारोपण द्वारा इसे रोका जा सकता है।