गौतम बुद्ध की कहानी | gautam buddha’s story

इस पोस्ट में आप को gautam buddha’s story के बारे में पढ़ने को मिलेगा। जीवन में असंभव कुछ भी नहीं है और जब जागो तब सवेरा होता है।अगर आपको यह लगता है कि मैंने बहुत से बुरे काम किए हुए हैं और अब इन गलत कामों को सुधारने के लिए कोई भी विकल्प नहीं है तो आपको गौतम बुद्ध के जीवन की एक कहानी एक बार अवश्य सुननी चाहिए पी

जीवन में असंभव कुछ भी नही है।

गौतम बुद्ध श्रावस्ती के एक गांव में भिक्षाटन के लिए पहुंचते हैं जब बुद्ध गांव में प्रवेश करते हैं तो देखते हैं कि पूरे गांव में सन्नाटा छाया हुआ है दूर-दूर तक कोई व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था। बुद्ध उस गांव के पहले द्वार पर जाते हैं और कहते हैं, भिक्षा देही, परंतु भीतर से बाहर कोई नहीं आता। वह दूसरे द्वार पर जाते हैं, परंतु कोई दरवाजा नहीं खोलता। बुध तीसरे द्वार पर जाते हैं, परंतु उस द्वार से भी कोई व्यक्ति बाहर नहीं आता। फिर अचानक से एक दरवाजा खुलता है।जिसमें से एक व्यक्ति बाहर निकलता है वह जल्दी से उसका हाथ पकड़ता और उन्हें अपने घर में ले जाता है और कहता है क्षमा करें,परंतु इस समय आप बाहर नहीं जा सकते उंगली माल को श्रावस्ती की सीमा पर देखा गया है।

सभी गांव वाले डर के मारे अपने अपने घरों की खिड़कियां दरवाजे बंद करके बैठे हुए हैं। बुद्ध उस व्यक्ति से पूछते हैं, कौन है यह उंगली माल और उससे इतना भय क्यों है? वह व्यक्ति कहता है उंगली माल राक्षस है उसे जो भी मनुष्य मिलता है। बच्चा, वृद्ध, स्त्री या पुरुष यहां तक कि सन्यासी वह किसी को भी नहीं छोड़ता। महाराज प्रश्न जीत के सैनिक भी उससे डरते हैं बुद्ध उस व्यक्ति से पूछते हैं क्या वह यह सब धन के लालच में करता है? वह व्यक्ति कहता है नहीं उसे कोई लालच नहीं है वो जब भी किसी मनुष्य पर वार करता है तो उसकी उंगली काट कर अपने गले की माला बनाता है। इसलिए उसका नाम उंगली माल पड़ गया है और यह भी सुना है कि जब उसके गले की माला में 100 उंगलियां पूरी हो जाएगी तो उसकी विनाशक शक्तियां और भी ज्यादा बढ़ जाएंगी।

बुद्ध कहते हैं, आभार आपका जो आपने मुझे उसके बारे में बताया है फिर वो व्यक्ति बुद्ध से कहता है कि कृपा कर आप बाहर न जाए क्योंकि वह आप पर भी बार कर सकता है। बुद्ध कहते हैं, भय से अपनी राह छोड़ दो ऐसा मैंने कभी नहीं किया मुझे भिक्षा मांगता देख जन-जन के हृदय में उंगली माल भय काफी कम होगा। फिर वो व्यक्ति कहता है नहीं बुद्ध आप मत जाइए वो बहुत ही ज्यादा खतरनाक है। बुद्ध कहते हैं, वह खतरनाक नहीं बल्कि दुखी है और मुझे उस के पास जाना होगा क्योंकि उसे मेरी आवश्यकता है। इतना कहकर उस व्यक्ति के पास से चले जाते हैं कुछ दूर चलने के बाद बुद्ध वन में प्रवेश करते हैं उन्हें चारों ओर सन्नाटा छाया होता है दूर-दूर तक ना तो कोई मनुष्य और ना ही कोई पशु पक्षी दिख रहा होता है परंतु बुद्ध अपने मार्ग में आगे बढ़ते रहते हैं।

अचानक बुद्ध के सामने उंगली माल आकर खड़ा हो जाता है। उसका रूप इतना डरावना होता है कि कोई भी व्यक्ति उसे देखकर ही भयभीत हो जाए। उसके गले में उंगलियों की माला होती है चेहरा और हाथ रक्त से सने होते हैं और शरीर बलशाली होता है। उसका रूप इतना भयानक होता है कि किसी साधारण व्यक्ति के प्राण तो उसे देखते ही निकल जाए। परंतु बुद्ध पर उंगली माल के इस डरावने रूप का कोई भी असर नहीं होता।

बुद्ध कुछ क्षण तक एक शांत मुस्कुराहट के साथ उंगली माल की तरफ देखते हैं और फिर उसकी बगल से निकल कर अपने मार्ग में आगे बढ़ जाते हैं। बुद्ध को ऐसा करते देख उंगली माल को ये समझ नहीं आता कि उसके साथ ये हो क्या रहा है। वह मन ही मन सोचता है कि मुझे देख कर लोग या तो भाग जाते हैं या मुझे देखकर ही मर जाते हैं या फिर मुझसे अपने प्राणों की भीख मांगने लगते हैं।

मैने कई संन्यासियों को भी मारा है। परंतु मैंने आज तक कोई ऐसा व्यक्ति नहीं देखा जो मुझे नजरअंदाज करके अपने मार्ग में आगे बढ़ जाए या तो इसने मुझ पर ध्यान नहीं दिया होगा या फिर हो सकता है कि यह देख ही ना सकता हो। परंतु मुझे इससे क्या मुझे तो अपनी उंगलियों की माला पूरी करनी है। उंगली माल बुद्ध को आवाज लगाता है। ए साधु रुक! फिर भी बुद्ध उंगली माल को नजरअंदाज करते हैं और अपने मार्ग में आगे बढ़ते रहते हैं और उंगली माल और ज्यादा क्रोध में भरकर बुद्ध को आवाज लगाता है। ए साधु रुक! फिर भी बुद्ध उंगली माल को नजरअंदाज करते हैं और अपने मार्ग में आगे बढ़ते हैं। उंगली माल, तीसरी बार बहुत ही ज्यादा क्रोध में भरकर आवाज लगाता है। ए साधु रुक! फिर बुद्ध रुकते है। उंगली माल बुद्ध के पास जाता है और कहता है, आदेश देने के बाद भी तू रुका क्यों नही ?

बुद्ध कहते हैं मैं तो बहुत पहले ही रुक चुका हूं। तुम ही चलते जा रहे हो उंगली माल ये समंझ ही नहीं पाता कि बुद्ध क्या कह रहे हैं। परंतु वो इतना जरूर समझ जाता है कि सामने खड़ा व्यक्ति उससे थोड़ा भी नहीं डर रहा है। उंगली माल बुद्ध को डराने के लिए चिल्लाकर पूछता है। ए साधु! तुझे मुझसे भय नहीं लग रहा है क्या? मैं आदिमानव हूं। बुद्ध कहते है नहीं, तुम मानव हो। बुद्ध की यह बात उंगली माल के दिल पर लगती है। पहली बार उसे किसी ने मानव कहा था। परंतु इस बात को नजरअंदाज करने का प्रयास करता है और उससे पूछता है,

ए साधु! तूने ये क्यों कहा कि तू कब का रुक चुका है जबकि तू तो चल रहा था और तूने यह क्यों कहा कि मैं नहीं रुका ? बुद्ध कहते हैं, मैं बहुत पहले ही रुक चुका हूं यानी मैंने ऐसे सारे बुरे कृत्य करना पहले ही छोड़ दिया है। जिससे किसी भी व्यक्ति को कष्ट पहुंच सकते हैं। सब जीना चाहते हैं, बस तुम उन्हें करुणा से देखने का प्रयास करो, बुद्ध के यह शब्द दोबारा से उंगली माल के दिल पर चोट करते हैं। परंतु वह दोबारा बुद्ध की बातों को नजरअंदाज करने का प्रयास करता है और इस बार वह और क्रोध में भरकर उनकी गर्दन पर अपनी कटारी रख देता है।

जिससे लोगों की हत्या किया करता था और बुध से चिल्लाकर कहता है नहीं, मानव में न तो प्रेम है और ना ही करुणा है। सिर्फ छल और कपट है, इसलिए मैं सब की हत्या करूंगा और किसी को जीवित नहीं छोडूंगा। बुद्ध कहते हैं तुम्हें लोगों ने बहुत दुख दिया है उंगली माल क्रूरता मनुष्य अज्ञान के कारण ही करता है। ईशा, द्वेष, मोह माया यह सभी अज्ञान की ही संताने हैं परंतु वह व्यक्ति ही है।जिसमें दया,करुणा और सद्दभाव और समंझ का उदय भी होता है उंगली माल यदि इस जीवन में क्रूर और निष्ठुर लोग है तो दयावान भी हैं। बस तुम्हें अपनी आंखों से इस अंधेपन की इस पट्टी को हटाना होगा जो तुम्हें केवल बुराई ही दिखा रही है।

तीसरी बार बुद्ध के शब्दों को सुन उंगली माल का खुद पर संयम हट जाता है। उसे समझ नहीं आता कि पहली बार उसे अपना आपा इतना कमजोर क्यों महसूस हो रहा है। वह कोशिश तो करता है क्रोध करने की परंतु कर नहीं पाता वो बड़ी हिम्मत जुटाकर क्रोधित होने का नाटक करके बुद्ध से कहता है तुम और व्यक्तियों जैसे नहीं हो।बुद्ध कहते हैं मैं हर व्यक्ति जैसा ही हूं बस जागृत हूं और यह सिद्ध कर रहा हूं कि हर व्यक्ति में जागने की क्षमता है। मेरा मार्ग क्रूरता को दया में परिवर्तित करता है। उंगली माल तू अनजाने में घृणा के पद पर हो, बस इस क्षण रुक जाओ। तुम्हारे भीतर भी ये क्षमता है कि तुम दया और करुणा के पद पर चल सको। इतना सुनते ही उंगली माल के हाथ से कटारी जमीन पर गिर जाती है और उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं भला कोई कब तक बुद्ध को अनदेखा करेगा।

उंगली माल रोते हुए बुद्ध से पूछता है क्या आप वही हैं। जिन्हें लोग बुद्ध कहते हैं जो लोगों को मुक्ति के मार्ग पर चलना सिखाते हैं। फिर बुद्ध कहते हैं कि हां मैं वही हूं और तुम्हें भी मुक्ति के मार्ग पर ले जाना चाहता हूं। फिर उंगली माल कहता है परंतु मैं अब बहुत दूर निकल गया हूं। मैंने बहुत हत्याएं करी है और बहुत पाप करें हैं। मैं अब चाहकर भी वापस नहीं लौट सकता और मेरा वापस लौटना अब असंभव है। बुद्ध कहते हैं, असंभव कुछ भी नहीं जब जागो तभी सवेरा। उंगली माल कहता है, मैं अब पुन: जीवन की ओर नहीं मोड़ सकता, बहुत देर हो चुकी है। बुद्ध कहते हैं, तुम में इतनी चेतना है कि तुम जानते हो, कि जो तुमने अब तक किया वह बुरा था इसका अर्थ यह है कि तुम जानते हो कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है।

उंगली माल जिस दिन से तुमने अच्छा कार्य करना शुरू कर दिया उस दिन से तुम्हारा एक नया जीवन शुरू हो जाएगा फिर उंगली माल कहता है मैं कितने भी अच्छे कार्य क्यों न कर लूं परंतु लोग मुझे उसी दृष्टि से देखेंगे और मुझे चैन से जीने नहीं देंगे। बुध कहते हैं, उंगली माल यदि तुमने हिंसा का मार्ग छोड़ा मैं तुम्हें मार्ग दिखाऊंगा और तुम्हारा संरक्षण करूंगा और तुम ही लोगों की घृणा से बचाऊंगा। बस पहला कदम तुम्हें ही उठाना होगा। उंगली माल पूछता है, क्या यह हो सकता है। बुद्ध कहते हैं, अवश्य हो सकता है तुम्हें असामान्य बुद्धि है उंगली माल तुम परम सत्य के पथ पर बहुत आगे जाओगे।

उंगली माल रोते हुए उनके चरणों में गिर पड़ता है और कहता है, मैं आपको वचन देता हूं कि मैं सारे बूरे कृत्य करना छोड़ दूंगा और आपके पीछे करुणा के पथ पर चलना सीख लूंगा। कृपा कर आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिए। बुद्ध कहते हैं, मैं किसी को अपना शिष्य नहीं बनाता बल्कि व्यक्ति स्वयं मेरे संग से जुड़ता है उंगली माल उसी समय बुद्ध का भिक्षु बन जाता है।

बुद्ध का भिक्षु बनने के बाद उसका नाम अहिंसक पड़ जाता है। फिर बुद्ध ने उसका जैसा नाम रखा था और वह ठीक वैसा ही वह बन चुका था। जब अहिंसक प्रथम बार अन्य भिक्षुओं के साथ एक गांव में भिक्षाटन के लिए जाता है तो गांव के कुछ लोग उससे बदला लेने के लिए उसे लाठी-डंडों से पीटने लगते हैं। जब यह बात बुद्ध को पता चलती है तो वे तुरंत उसे बचाने के लिए उसके पास पहुंचते हैं और अपने शरीर को लाठी-डंडों के बीच में ले आते हैं। जो अहिंसक को पड़ रहे थे बुद्ध को देखकर वे गांव वाले डंडे और पत्थर मारना बंद कर देते हैं सभी लोग बुद्ध से कहते हैं क्यों आप इस हत्यारे उंगली माल की रक्षा कर रहे हैं न जाने कितने लोगों की जाने ली हुई हैं इसने।

बुद्ध कहते हैं, अब यह उंगली माल नहीं है बल्कि इसका नाम अब अहिंसक है अब आपकी ही तरह एक मानव है। वह गांव वाले कहते हैं ऐसा आदमी कभी नहीं बदल सकता बुद्ध कहते हैं। यह बदल चुका है बस आप सब लोग इसे अपनी पुरानी दृष्टि से देख रहे हैं यदि ये उंगली माल होता तो क्या आप में से किसी में भी इतना साहस या बल होता कि कोई इसे एक उंगली भी लगा सके यह आपका हर बार खाता रहा और क्या इसने आप पर कभी पलटकर वार किया नहीं ना क्या यह परिवर्तन आपको नहीं दिखा। आज इसने अपना लहू बहा से अपने सारे पूरे कृत्य धो डाले हैं आप लोगों के द्वारा इतनी मार खाने के बाद भी इसकी आंखों में आपके लिए क्रोध नहीं है क्या यह बदलाव आपको नहीं दिख रहा है।

यह तो बदल गया परंतु आप कब बदलोगे इतने में ही उन गांव वालों में से एक स्त्री कहती है। यह परिवर्तन मैंने स्वयं देखा है वो स्त्री गांव वालों से कहती है आप में से कौन ऐसा है जो दूसरों के दुख में दुखी हो दूसरों की पीड़ा सहन ना हो तो उसे हर प्रकार की सहायता प्रदान करें और ऐसा इस भिक्षु ने किया है 2 दिन पहले एक व्यापारी अपनी पत्नी को लेकर जा रहा था और उसकी पत्नी प्रसव पीड़ा से व्याकुल थी। तब मैं पास से ही गुजर रही थी इसलिए मैं भी दौड़ी-दौड़ी गई उसकी पीड़ा बढ़ती ही जा रही थी घना जंगल होने के कारण उसे कहीं ले जाया भी नहीं जा सकता था।

तभी यह भिक्षु वहां पहुंचा और इसने ने मुझसे पूछा कि क्या हुआ बहन मैंने इसे बताया कि यह स्त्री प्रसव पीड़ा में है और इस घने वन में हम कुछ कर भी नहीं पा रहे हैं कब तक यह कष्ट भोगेगी और कहीं इसके और इसके बच्चे के प्राण ना चले जाए। फिर इस भिक्षु ने मुझसे कहा कि ऐसा नहीं होगा मैं अभी अपने गुरु के पास जाऊंगा अवश्य ही कोई मार्ग दिखाएंगे। इतना कहकर यह दौड़कर वहां से चला गया और बुद्ध कहते है कि फिर व्यथित हो अहिंसक मेरे समक्ष आया और मेरे पैरों में गिर कर मुझसे कहने लगा।

बुद्ध एक स्त्री गहन प्रसव पीड़ा में है और उसकी पीड़ा बढ़ती ही जा रही है। कहीं मां और बच्चे को कुछ ही न जाए और ये सब सुनकर बुद्ध ने कहा कि दौड़ कर जाओ और उससे कहो बहन जिस दिन से मेरा जन्म हुआ है। मैंने जानबूझकर किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं पहुंचाया है। मेरे सत्कर्म तुम्हारा सुरक्षा कवच बने और आपकी और आपके शिशू की रक्षा करें अहिंसक ने मुझसे कहा परंतु यह तो असत्य होगा बुद्ध सत्य तो यह है की मैने आज तक बहुत से प्राणियों को कष्ट पहुंचाया है।

यदि मैंने ऐसा कहा तो वे माता और शिशु उसी क्षण प्राण त्याग देंगे फिर बुद्ध ने कहा तो तुरंत जाओ और उस स्त्री से कहो बहन जिस दिन से मेरा एक नया जन्म हुआ है। मैंने सभी बुरे कृतियों को त्यागा है और उस दिन से मैंने किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं पहुंचाया है और मेरे सत्कर्म आप का सुरक्षा कवच बने और आपकी और आपकी शिशु की रक्षा करें फिर अहिंसक ने बुद्ध से पूछा कि क्या मेरे सत्कर्म उन्हें बचा लेंगे बुद्ध ने कहा कि अवश्य यह तुम्हारी अपनी कमाई है या तो तुम इसे अपने लिए बचा कर रखो या फिर किसी पराए पर खर्च कर दो अपने कमाए सत्कर्म को किसी पराए पर न्योछावर करने से पहले अहिंसक ने एक क्षण नहीं सोचा और वह उसी समय उस स्त्री और उसके शिशु की जान बचाने के लिए वहां चला आया।

वह स्त्री कहती है की हां यह दौड़ कर वहां आया और अभी भी वो स्त्री गहन पीड़ा से जूझ रही थी। इसने अपने दोनों हाथ जोड़े और आंखें बंद करके कहने लगा। बहन जिस क्षण से में भिक्षु बना हूं उस क्षण के बाद मैंने कोई भी ऐसा कृत्य नही किया हो ।जिससे कि किसी भी प्राणी को कष्ट पहुंचे। मेरे सत्कर्म आपके लिए सुरक्षा कवच बने आपकी और आपकी शिशु की रक्षा करें और इतना कहते ही उस स्त्री ने अपने बच्चे को जन्म दे दिया। फिर बुद्ध कहते हैं दूसरों के दुख से दुखी होने वाला यह व्यक्ति अहिंसक कैसे किसी को दुख दे सकता है यदि ये भिक्षु मन का सच्चा ना होता तो वह स्त्री कब के अपने प्राण त्याग चुकी होती।

फिर अहिंसक ने बुद्ध से कहा है की इन्हें मत रोकिए बुद्ध इन्हें मारने दीजिए और तब तक मारने दीजिए इनके मन का क्रोध शांत ना हो जाए फिर बुद्ध अहिंसक से कहते हैं कर्म और गुणों के भंडार हो। आज तुमने अपने नाम अहिंसक को सिद्ध कर दिया है बुद्ध और स्त्री की बात सुन वे सभी गांव वाले कहते हैं आप सही कह रहे हैं बुद्ध अहिंसक बदल चुका है हमसे देखने में भूल हो गई थी।

निष्कर्ष

इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि लोग सोचते हैं कि उन्होंने बहुत सारे गलत काम किए हुए हैं अब गलत कामों को सुधारने के लिए कोई विकल्प नहीं है इस पर गौतम को कहते हैं कि चाहे आपने अब तक कितने भी बुरे काम किए हुए होंगे लेकिन अगर आपके विचार अपने मन में लाते हैं कि अब मुझे कुछ सही करना है तो वहीं विचार आपके रूपांतरण का कारण बन सकता है पर सबसे जरूरी बात यह है कि क्या आप पहला कदम उठाने के लिए तैयार है यह कहानी आपको कैसी लगी नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताएं

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