Moral Stories: देवरानी से इतनी जलन क्यों

Moral Stories: देवरानी से इतनी जलन क्यों” बड़ी बहू तुम जेठानी बन चुकी हो। थोड़ा बड़प्पन तो दिखाओ। क्या हर समय अपनी देवरानी से अपनी तुलना करती रहती हो? यूं ही तुलना करती रहोगी तो अपना ही घर बर्बाद कर लोगी”


मनोरमा जी बड़ी बहू गरिमा को समझाते हुए बोली। पर वो तो समझना ही नहीं चाह रही थी।
” क्यों तुलना ना करूं मम्मी जी। मुझे तो आपने हमेशा कम ही माना। क्योंकि मेरा पति कम कमाता है। अब देवर जी ज्यादा पैसा कमा रहे हैं तो उनकी पत्नी को ज्यादा अपनापन मिल रहा है। अरे बहुएं तो एक जैसी होनी चाहिए। पर मैं तो आपको कभी फूटी आंख नहीं सुहाती “

Moral Stories: देवरानी से इतनी जलन क्यों
Moral Stories: देवरानी से इतनी जलन क्यों


गरिमा तुनकते हुए बोली।
” कैसी बात कर रही हो बड़ी बहू। जब तुम्हारी शादी हुई थी तब घर में कमाने वाले सिर्फ तुम्हारे ससुर जी थे। गगन की तो उस समय नौकरी ही लगी थी। और मयंक तो तब पढ़ ही रहा था। अब मयंक भी अच्छी जॉब करता है।

साथ ही उसकी पत्नी नेहा भी कमाती है। अब जब कमाने वाले चार हो चुके हैं। तो अब हर चीज पहले से बेहतर हो रही है। जैसी कमाई है वैसा काम हो रहा है। तो इसमें इतना मुंह फुलाने की क्या बात है”

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मनोरमा जी ने गरिमा को समझाने की नाकाम कोशिश की।
” हां हां, सब समझ में आ रहा है मुझे। कहना क्या चाहती है आप कि अब मैं भी नौकरी करने लग जाऊं। अरे मेरे मां-बाप ने मुझे इतना पढ़ाया होता तो मैं भी नौकरी कर रही होती। पर नहीं उन्हें तो मेरी जिंदगी बर्बाद करनी थी। जो ऐसे घर में मेरी शादी कर दी, जहां बड़ी बहू को तो घर की नौकरानी समझा

जाता है। और छोटी बहू को सिर आंखों पर बिठाया जाता है। पैसा देखकर दोनों बहूओं के साथ व्यवहार होता है “
बड़बड़ाती हुई गरिमा अपने कमरे में जाकर बैठ गई। मनोरमा जी ने अपना सिर पकड़ लिया। आखिर जितना उसे समझाने की कोशिश करती वो समझना तो दूर की बात है सुनना ही नहीं चाहती।


जब से मयंक की शादी हुई है तब से ये तो अब इस घर में आए दिन ही होने लगा था। गरिमा हर रोज किसी न किसी बात को लेकर मनोरमा जी से लड़ जाती थी। आज सिंजारे पर नेहा के लिए लाई गई साड़ियों को देखकर गरिमा मनोरमा जी से बहस कर बैठी।


सिंजारे के कपड़े देखने के बाद गरिमा का मानना था कि मनोरमा जी ने नेहा के लिए सभी कपड़े महंगे रखे हैं जबकि उसके लिए सस्ती सी साड़ियां रखी थी। जबकि चूड़ियां और मेकअप का सामान भी अच्छी क्वालिटी का था। उसे तो लोकल बाजार से खरीद कर भेजा गया था।


मनोरमा जी के परिवार में उनके पति महेश जी, बेटा गगन और बहू गरिमा, उनकी एक तीन साल की बेटी परी, छोटा बेटा मयंक था और छोटी बहू नेहा थी।


महेश जी एक बैंक में क्लर्क थे, वही गगन एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता था। मयंक अभी पिछले साल ही इंजीनियर बना है और एक अच्छी खासी कंपनी में काम करता है। जबकि गरिमा मनोरमा जी की तरह ही एक गृहणी है। मयंक की शादी नेहा के साथ तीन महीने पहले ही हुई थी जो की एक पढ़ी-लिखी नौकरी पेशा लड़की थी। और उसी के ऑफिस में काम करती थी।


दोनों की ही लव कम अरेंज मैरिज थी। दोनों पति-पत्नी मिलकर अच्छा कमाते थे और अपने अनुसार खर्च करते थे। यह देखकर गरिमा चिड़ जाया करती थी। शादी के बाद जब मयंक और नेहा हनीमून पर गए थे तो उनके जाने के बाद भी गरिमा ने मनोरमा जी से काफी बहस की थी। न सिर्फ मनोरमा जी से बल्कि गगन से भी।


” उन दोनों को तो घूमने के लिए बाहर भेज दिया, पर हमें तो नहीं भेजा था। हमारे साथ ऐसा दोगला व्यवहार क्यों? वही लाडले बेटे बहु है क्या? हम तो कुछ नहीं थे “
” कैसी बात कर रही हो तुम गरिमा। उस समय घर की स्थिति अच्छी नहीं थी। शादी का काफी सारा खर्चा तो कर्ज लेकर ही किए थे। पर अब स्थिति पहले से बेहतर है। और हनीमून तो मयंक और नेहा दोनों ने मिलकर डिसाइड किया है। और उसका खर्चा भी खुद ही उठाया है”


” तो कहना क्या चाहते हो? अब मैं तुम्हारे बराबर खर्चा उठाऊं। अरे जब खर्चा उठाने की औकात नहीं थी तो शादी ही क्यों की थी मुझसे। जिंदगी भर क्या फकीरों की तरह ही रहूंगी मैं अपनी इच्छाओं को मार कर”
गरिमा ने ऐसे शब्दों से गगन का दिल भेद दिया। उसकी बात सुनकर वो बिल्कुल हैरान रह गया। उधर मनोरमा जी ने जब इसके बारे में उसे समझाना चाहा तो वो मनोरमा जी से भी लड़ पड़ी,


” सब जानती हूं मैं। ये सब आपका ही किया धरा है। आप ही चाहती है कि मैं अपने पति से झगड़ा करूं। इसीलिए आप दोनों बहूओं में भेदभाव करती हैं। अगर आप मना कर देती तो उनकी हिम्मत थी कि वो लोग हनीमून पर जा सकते थे। लेकिन नहीं, आपको तो अब उन्हें सिर आंखों पर बिठा के रखना है। सारी पाबंदी तो हमारे लिए ही थी”


मनोरमा जी को ही जब पलट कर जवाब मिला तो वो चुप हो गई। आखिर जिसकी आंखों पर पर्दा पड़ा हो वो किसी की सुनेगा क्यों। इतनी जलन की भावना देखकर ही मनोरमा जी हैरान रह गई।


आए दिन कोई ना कोई बात को लेकर वो लड़ झगड़ रही थी। और अब सिंजारे के कपड़ों के पीछे लड़ पड़ी। सुबह से शाम तक घर में कलह का माहौल ही रहा। ऐसा माहौल कि इसके बीच में गरिमा ने अपनी बेटी परी को संभालना भी मुनासिब नहीं समझा। पूरे दिन परी अपनी दादी के पास ही रही।


शाम को जब सब लोग अपने-अपने ऑफिस से घर आए तो भी माहौल बड़ा अजीब सा था। किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि जाकर गरिमा को एक बार टोके तो सही। आखिर जब गगन से रहा नहीं गया तो उसने बाहर बरामदे में आकर अपने ससुराल फोन लगा दिया और अपने सास ससुर को गरिमा के बारे में सब कुछ बताकर घर पर बुला लिया। आखिर जब से मयंक की शादी हुई थी, उसकी शादी और जिंदगी जी का जंजाल बनी हुई थी। आखिर कोई ना कोई फैसला तो लेना ही था।


आखिर कुछ देर बाद उसके मम्मी पापा उसके ससुराल पहुंच गए। अचानक अपनी मम्मी पापा को घर पर देखकर गरिमा मनोरमा जी की तरफ गुस्से से घूरने लगी। उसे अपनी मम्मी की तरफ ऐसे देखते‌ देख कर गगन बोला,
“मम्मी जी पापा जी को मम्मी ने नहीं, मैंने बुलाया है। मुझसे बात करो”
गगन के कहते ही गरिमा उसकी तरफ देखने लगी,


“पूछ सकती हूं क्यों? आज मेरे मम्मी पापा को ससुराल क्यों बुलाया गया है। एक तो आपका परिवार मेरे साथ इस तरह का दोहरा व्यवहार कर रहा है। दोनों बहूओं को एक जैसा नहीं समझता। और ऊपर से मेरे ही मायके वालों को बुलाया जा रहा है। आखिर गलत क्यों बर्दाश्त करूं मैं”


“ऐसा क्या गलत हुआ है तेरे साथ? बताएगी मुझे। जरा मैं भी तो सुनूं “
गरिमा ने कहा तो उसकी मम्मी बीच में ही बोली।
आखिर गरिमा ने वही सारी बातें दोहरा दी जो वह अक्सर मनोरमा जी और गगन के सामने कहती थी। उसके मन में इतनी जलन की भावना देखकर उसके माता-पिता भी हैरान रह गए।


“इतनी जलन की भावना? वो भी अपनी ही देवरानी से। ये दोनों जो कर रहे हैं अपनी मेहनत के दम पर कर रहे हैं। तेरे पति की कमाई से तो कुछ नहीं ले रहे हैं ना। और इतनी महंगी महंगी साड़ियां अगर सिंजारे में देने के लिए आई है तो अब घर की स्थिति बेहतर हो चुकी है।

और उसके लिए भी पैसा उसका पति और ससुर दे रहे हैं। तुझे ऐतराज़ क्यों है? तेरे लिए भी तो जो चीजें आई थी, उसमें तेरे पति और तेरे ससुर की मेहनत की कमाई थी। फिर फर्क कहां हुआ? तू तो देवरानी से बड़ी है ना। थोड़ा तो बड़प्पन दिखाती। छोटी-छोटी बातों को लेकर लड़ पड़ी”


गरिमा की मम्मी ने कहा।
“और बेटा किसी की बेहतर स्थिति को देखकर अपने आप को कमतर क्यों समझती हो। ये दोनों जॉब करते हैं तो अपने अनुसार खर्च कर लेते हैं। अगर तुम्हें गगन जी की कमाई कम लगती है तो तुम भी थोड़ी मेहनत करो। भला तुम्हें किसने रोका है”
गरिमा के पापा ने कहा।

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“वाह पापा! आपने मुझे इस लायक बनाया भी है? ट्वेल्थ के बाद में मुझे पढ़ने ही कहां दिया। घर के काम सीखा कर शादी करवा दी आपने। मुझे मौका दिया होता तो मैं भी शायद कुछ होती”
गरिमा अपने पापा से बहस करते हुए बोली।


” चुप कर। तुझे हमने रोका था क्या पढ़ने से? तुझे तो खुद पढ़ने का शौक नहीं था। जैसे तैसे राम-राम करते तो तेरी स्कूल की पढ़ाई पूरी हुई थी। तुझे तो बस टीवी दिखवा लो। या फिर अपनी सहेलियों के साथ घूमवा लो। जब तुमने खुद मेहनत नहीं की तो अपने माता-पिता पर इल्जाम लगाने का भी हक नहीं है।

कुछ बेहतर पाने के लिए खुद को भी मेहनत करनी पड़ती है। माता-पिता बच्चों का भाग्य नहीं लिख सकते। उस वक्त तुझे कितना समझाते थे, पर तुझे समझ में नहीं आता था। तो फिर तेरी शादी करने के अलावा हम करते ही क्या?”


गरिमा की मम्मी ने उसे डांटते हुए कहा तो उसने अपनी नज़रे नीचे कर ली। पर उसकी मम्मी ने अपना बोलना बदस्तूर जारी रखा,
” और अभी भी क्या कर रही है? जलन में अपना ही घर बर्बाद कर रही है। जितना फ्री टाइम बैठ कर दूसरों से जलन कर रही है ना, उसमें कुछ नया कर। अपनी जिंदगी को बेहतर बना। किसने मना किया है। और खबरदार!आइंदा कभी कहा तो कि फकीरों के घर में ब्याह दिया। खुद में कोई हूनर नहीं है। और ख्वाब आसमानों के देख रही हो”


अपनी मम्मी के लताड़ सुनकर गरिमा चुप हो गई। लेकिन मनोरमा जी ने अपना फैसला सुना दिया,
“देखिए समधन जी, मैं किसी की भावनाओं को दबा नहीं सकती। अगर एक बार जलन और इर्ष्या की भावना किसी के लिए मन में घर कर जाए तो वो कभी जाती नहीं।

बेवजह इन लोगों की जिंदगी में परेशानी हो, उससे बेहतर है कि मैं खुद ही अपने दोनों बेटों को अलग कर दूं। मैं नहीं चाहती कि मेरे घर में आज जो हुआ है वो दोबारा हो। दोबारा हमें अपनी बहूओं के मायके वालों को इस तरह से यहां बुलाना पड़े। बाद में पछताने से अच्छा है कि वक्त रहते ही फैसला कर लो”

आखिर मनोरमा जी के इस फैसले का किसी ने विरोध नहीं किया। आखिरकार एक सप्ताह के अंदर ही गगन और गरिमा को घर का ऊपर वाला पोर्शन दे दिया गया। जबकि महेश जी और मनोरमा जी अपने छोटे बेटे बहू के साथ नीचे वाले पोर्शन में ही रहे। और अब गरिमा सिलाई सेंटर जाती है सिलाई सीखने के लिए। और उसके पीछे मनोरमा जी ही उसकी परी को संभालती है।


आप को ये “Moral Stories: देवरानी से इतनी जलन क्यों” कैसी लगी अपनी राय जरूर दे।

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