Haryanvi Kahani “एक और”
Haryanvi kahani |
पिंकी न कॉलेज तै आकैं किताब धरी ए सैं। गेल गेल उसका पापा बी खेत तै टिंडे तोड़ कैं आ लिया। टिंडयां की टोकरी आँगण म्हं धरदी। सबेरे बेचण खातर मंडी बी जाणा सै।
पिंकी चा चढ़ा ले। आज तो खेत म्हं सारा दिन लाग्या।
पापा,चढाऊं सूं।
पिंकी नै चूल्हे म्हं आग बाळ ली आर दूध का लोटा फ्रिज म्हं तै ल्याण भीतर चली गयी। इतणे म्हं उसकी सहेली नै रुक्का मारया।
पिंकी! ए पिंकी! ए कित बड़ रह्यी सै? तावळी बाहर आ। मेरा नीट का पेपर क्लीयर होग्या। ले मिठाई खा ले।
आच्छया ए प्रीति। भोत -भोत बधाई हो म्हारी डाक्टरणी न।
पिंकी बाहर आयी तो प्रीति उसकै भाज कैं चिपटगी। वे दोनूं बचपन तैं साथ पढ्या करदी। पिंकी कै आंख्या म्हं पाणी सा आग्या। आपणी सहेली खातर वा घणी ए खुश होयी।
एकेदम चूल्है पै चढ़ी चा याद आयी तो चूल्है कान्ही भाज ली। आपणे ए विचारां म्हं खोयी न कद पापा खातर चा बणा दी, बेरा ए नहीं लाग्या। बस उदास सी होकैं भीतर खाट पै जा लेटी, आर आपणे जीवन का हिसाब- किताब करण लागी।
प्रीति आर मैं बचपन तै एक क्लास म्हं थी। कदे वा प्रथम आंदी, कदे मैं। दोनूं एक सी होशियार, आर एक सा सपना। बड़ी होकैं डॉक्टर बणना सै। कित मैं बी. ए .सेकंड ईयर म्हं उलझ रह्यी सूं, आर प्रीति का नीट बी क्लीयर होग्या।
मेरी बी बारहवीं म्हं मैरिट आयी, आर उसकी बी। पर माँ -पापा न एक एक नहीं सुणी। सुणदे बी क्यूँ? माँ जाणै सै, मेडिकल की पढाई खातर तैयारी करण म्हं दिन रात पढणा पड़ै सै। जै मैं किताब ठा लूंगी तो माँ के आये साल के जाप्पे कौण काढैगा?
छ: भाण आर एक साल के भाई म्हं पिंकी सबतै बड़ी सै। वा उनकी भाण कोनी, दूसरी माँ सै। उसकी माँ न तो पेट तै ए फुर्सत कोनी। उसकी सुध कित तै आवै। दादा -दादी बी दूसरे चाचा कानी सैं। उन्नीस साल की पिंकी न के सुख देख्या। सारा दिन छोटे भाण भाई न गोदी टांगे राखै सै। कदे रोटी खुआणा, कदे स्कूल का काम करवाणा।
कदे गोबर का तांसळा तो कदे घर का काम। एक तो कमाणिया जमींदार आदमी, ऊपर तै इतणे खाणिये। पहलम वा होयी, फेर तीसरे साल दूसरी, फेर तीसरी , फेर चौथी, फेर आये साल माँ का पेट फूलदा, कदे पाँच महीना की तो कदे चार महीना की सफाई। फेर एक साल अराम, आगले साल फेर तैयारी। कई साल वाये कहाणी। ना घर आळे जीण देंदे, ना पास पड़ोसी।
Haryanvi kahani (हरियाणवी कहानी )
तेरै ना छोरे होंवै, तूं तो ये ए पिल्लूरी जाम्मैगी। इसे इसे बोल के सुणे नहीं जांवै।
पिंकी की माँ न बी कसम खा ली, छोरा तो जाम कैं ए रहूंगी। चाहे किम्मे होज्या। इस बाट म्हं दो छोरी ओर होगी। पर लुगाई न हार नहीं मानी। एक जाप्पा कोनी सम्भळया, दूसरा तैयार कर लिया। इब्काळे तुक्क बैठग्या छोरा होग्या।
भाण बी राज्जी होगी के ले हामनै बी पोंहची बाधण आळा मिलग्या। पर लुगाईयाँ न फेर बी ना टिकण दी। ए ईब तो छोरे होण लाग्गे। लागते हाथ एक छोरा ओर जाम ले। न्यू बी इतणी छोरियाँ म्हं यो एकला के दिक्खैगा? बड्डे स्याणे कह्या करैं ” एक आँख का के मिचणा आर के खोलणा।”
तीन महीना कै छोरे पै पिंकी की माँ न फेर तैयारी कर ली। न्यू तो पिंकी सारा काम करया करदी। पर इबकै माँ कमजोर घणी सै तो सारा ए काम उसपै पै आ पड़ा। छोटे भाई आर भाणा तै नुहाणा, खुआणा । बेचारी आधी बार किताब ठाण पावै सै।
आये दिन छुट्टी करी बैठी रह्वै सै। बाळक पाळदे पाळदे वा उन्नीस की होगी पर माँ जामण तै नहीं रह्यी। आज बी उसकी माँ कै नौम्मा उतरण न हो रह्या सै। बाळक नाम की चीज तै उसनै नफरत होगी।
Haryanvi Kahani (हरियाणवी कहानी)
पर के करै? कित जावै? कोये रास्ता ए कोनी।
पड़े – पड़े सांझ होगी। माँ की तो उठण की आसंग कोनी, पर भाण भाईयाँ का पेट तो भरणा ए सै। वा रोटी बणाण लाग्गी। सारी भाण चुगरदे न बैठगी आर रुक्के मारण लाग्गी । पहली रोटी मेर की,दूजी रोटी तेर की। पिंकी न घणा ए गुस्सा आया।
पर चुप्पी साँस की ढाळ भीतर खींचगी। उसनै एक रोटी आपणी भाण की प्लेट म्हं धर दी। सारी जणी रोटी का एक – एक टूक पाडण लाग्गी। पिंकी न न्यू लाग्या के आपणी मेडिकल की पढाई की किताब इनकै आग्गै धरदी। आर एक एक पेज न पाड़ पाड़ वे आपणे मुँह म्हं धरण लाग रह्यी सैं। सारी डॉक्टरी चबा कैं वे आराम तैं सोगी।
पर आज पिंकी न नींद नहीं आयी। रात न दादी उसकी माँ न संभाळण आयी तो ओर आग लगागी।
पिंकी की तो सारी जिंदगी बाळक पाळन म्हं ए चली जावैगी। ईब आपकी माँ के पाळै सै, फेर आपकी औलाद न पाळैगी। या तो बाळक पाळन ए धरती पै आयी सै।
पिंकी भाजकैं भीतर बड़गी आर खूब रोयी। उसनै धोळी बुर्सट म्हं सुत्ती उसकी छोटी भाण न्यू लाग्गी जणू उसके डॉक्टर आळे कोट का कपड़ा पाड़ कैं पहर रह्यी सै।
आँख्या म्हं एक धोळा कोट भीतर तांहि उचाटी ला रह्या सै। पिंकी का जी करया जणू आजे उरै तै भाज ले। मनै नहीं रहणा इस भैंसा के बाड़े म्हं। च्यारुं बळ न उसकी भाण भैंसां की ढाळ पसरी पड़ी सैं। एक दुकड़िये म्हं डांगर बी इतणे नहीं होंदे जितणे वे माणस सैं।
बस !भोत हो लिया। काल कॉलेज जांकैं उल्टी नहीं आऊं। चाहे कित्ते रहणा पड़ै। किस तरहां बी, पर इस घर म्हं नहीं।
पिंकी न एक कागज लिया आर लिखण बैठगी।
माँ,आज मेरी बाट ना देखिये। मैं तेरे बाड़े म्हं उल्टी नहीं आऊँ । तन्नै जाम कैं घणा बड़ा अहसान कर दिया। आर मनै तेरे बाळक पाळ कैं वे सारे एहसान तार दिए। माँ,तन्नै तो शर्म कोनी आंदी रोज ढोलक सा पेट लेकैं हांडदयाणी।
पर ,मन्नै आवै सै, आए दिन क्लास म्हं न्यू कहणा पड़ै सै,आज मेरा भाई बिमार सै,आज मेरै एक बेब्बे ओर होगी। तन्नै तो हाम छोरी नूये लगा राक्खी सां। माँ तन्नै न्यू बेरा सै, लुगाई ज्यात की इतणी बिरान माट्टी सै,फेर बी कितणी जाम -जाम गेरदी। माँ,बस टिक्कड़ खुआणा जिम्मेदारी कोनी।
बाहर लिकड़ कैं देख। जीणा कितणा मुश्किल सै। खैर तन्नै तो समझाणा ए बेकार सै। मैं कित्ते जाऊं? कित्ते रहूँ? तन्नै कोये मतलब नहीं। बस मैं नहीं आऊं।
पिंकी ए! ए पिंकी! सोगी के?
जा तेरी दादी न बुला ल्या। आर तेरे पापा न कह दे, भाज कैं दाई न बुला लावैगा।
पिंकी की माँ न टसकदी न कही। पिंकी समझगी माँ कै दर्द सैं। वा सब किमे भूलकैं दादी न बुला ल्यायी।
माँ की इसी हालत पिंकी पै देखी नहीं गयी। डरदी सी भीत कैं लाग कैं खड़ी होगी। थोड़ी देर म्हं दाई आगी। माँ की टसक कै साथ पिंकी कैं एक भाण ओर होगी।
जा ए पिंकी पाणी का पतीला उबाळ ल्या। पिंकी नै वा चिट्ठी चूल्हे म्हं देकैं आग बाळ ली। पाणी उबाळ लिया। आग म्हं सारा छो जळग्या। पिंकी एक ओर भाण पाळन की तैयारी करण लाग्गी।
आप को Haryanvi kahani कैसी लगी कमेंट में जरूर बताना।
सुनीता करोथवाल